Why Lord Vishnu Is Called Palanhar
शास्त्रों में विष्णु के लिए कहा गया है -
शांताकारं भुजगशयनं पद्यनाभ सुरेशम
विश्वाधार गगनसदृशं मेघवर्ण शुभांगम
लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिध्र्यानगमयम
वंदे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैनाथं
अर्थात- जो शांत आकार हैं, नागों की शैय्या पर शयन करने वाले हैं। जिनकी नाभि में कमल है और जो सभी देवों के अधिपति हैं। विश्व के आधार हैं, आकाश के सामान हैं। बादलों के सामान जिनकी कांति है। जो लक्ष्मी के पति हैं, कमल के सामान नयनों वाले हैं। जो योगियों के ध्यान में दिखाई पड़ते हैं। जो समस्त भेदों को मिटाने वाले हैं और सभी लोकों के एकमात्र अधिष्ठाता हैं। साधकों को ऐसे विष्णु की साधना करनी चाहिए।
सनातन धर्म में परब्रह्म को तीन रूपों में विभक्त किया गया है। एक रूप है ब्रह्मा, जिन्हे इस समस्त संसार का शिल्पी कहा गया है, वही इस सृष्टि की रचना करते हैं। वहीँ दूसरा रूप है शिव का जो इस संसार के संघारक हैं। लेकिन, सृष्टि के सृजन से लेकर संघारक तक की यात्रा के बीच विष्णु बसे हैं, जो जगत के पालनहार हैं और सृष्टि के समस्त दुखों को हरते हैं और ब्रह्माण्ड का संचालन करते हैं। इस सम्पूर्ण जगत में विष्णु की मान्यता भी इसी प्रकार है कि उन्हें जगत का पालक कहा गया है। हमारे वेदों में भी अधिकतर सूक्त विष्णु को ही समर्पित हैं।
गीता में खुद विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं की सम्पूर्ण जगत में मैं ही विधमान हूँ और जो कुछ भी इस संसार में घटित हो रहा है उसमें उस परब्रह्म अर्थात मेरी मर्जी है। इसी गीता में भगवान अपने विराट विष्णु स्वरुप के भी दर्शन देते हैं, जिनमें समस्त ब्रह्माण्ड विद्यमान है, समस्त चराचर प्राणियों के ऊर्जा श्रोत भी वही हैं।
गीता में श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं — जब-जब पृथ्वी पर अधर्म बढ़ता है और धर्म की हानि होती है। तब-तब धर्म स्थापना के लिए ये स्वयं अवतरित होते हैं। भागवत पुराण के अनुसार हर युग में श्रीकृष्ण ने किसी न किसी रूप में अवतार लेकर धर्म स्थापना की है। इस पुराण में विष्णु के दस अवतारों का वर्णन है। ये अवतार हैं — मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंघ, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध एवं कल्कि। मान्यता के अनुसार कलियुग में जब अधर्म बढ़ जायेगा और धर्म की हानि होगी तो जगत के संचालन के लिए वे एक बार फिर कल्कि अवतार में पृथ्वी पर आएंगे और धर्म और अधर्म के बीच संतुलन स्थापित करेंगे।
विष्णु के इसी स्वरुप और जगत के कल्याण के लिए किये गए कार्यों के कारण ही उनकी मान्यता पालनहार के रूप में हुई।